Respected Sir,
We thankfully reciprocate !
Regards,
R. Ganesan,
The New Modern Lodging House,
56, West Boulevard Road,
Teppakulam ( P. O. ),
Tiruchirapalli - 620 002.
Ph. : 94437 70405.
The New Modern Lodging House,
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Teppakulam ( P. O. ),
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Ph. : 94437 70405.
On Sunday, 3 November 2013 7:21 PM, Anuj Agrawal <dialogueindia.in@gmail.com> wrote:
'ओ देवी लक्ष्मी प्रेम प्रकाश और समृद्धि बरसाओ'
ओऽम श्री महालक्ष्मीऽच विद्महे विष्णुपत्नैऽच धीमहि तन्नोलक्ष्मी प्रचोदयात्।
ओ श्री महालक्ष्मी, विष्णु पत्नी जिनकी कांति सुवर्ण समान देदीप्यमान व शोभामय है वो देवी लक्ष्मी मुझ पर कृपा करें।
श्री लक्ष्मी श्रीमद्भागवतानुसार समुद्र मंथन से प्राप्त चौदह सम्पदाओं व विभूतियों में से एक हैं। लाल परिधान दिव्य आभूषणों और मणिमुक्ताओं युक्त मुकुट धारण किए प्रसन्न वदन कमल पर खड़ी हुई मुद्रा में प्रकट हुईं। एक हाथ में शंख सत्य के तुमुलनाद का प्रतीक, दूसरे हाथ में शुद्ध विवेक का परिचायक कमल, तीसरे हाथ में बेलफल धरती को परिलक्षित करता हुआ कि सही आर्थिक नीतियों द्वारा समस्त धरा पर समृद्धि व खुशहाली व्याप्त हो। बेलफल शिव जी को अर्पण करते हैं, जो अपूर्णता के संहार के लिए प्रयुक्त मानव ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है और उन प्राकृतिक नियमों का भी द्योतक है कि ऊर्जाओं के नियमन व संतुलन से ही सत्यम् शिवम् सुन्दरम् विश्व निर्मित होता है। चौथे हाथ में अमृत कलश है जो जीवन को पूर्णता व पूर्ण आत्मतुष्टि देने में सक्षम है। दिव्य स्थितियों को आकर्षित करने के स्रोत खोलता है। श्री लक्ष्मी विष्णु सहभागिनी होने के कारण वैष्णवी भी कहाती हैं जो नित्यता व सात्विकता के धर्म का परिचायक है। श्री विष्णु तो पूर्णता निरन्तरता के संरक्षक व प्रश्रयदाता हैं परम कृपालु हैं। मर्यादा गुणवत्ता व पूर्ण धर्मकालानुसार सही समय पर सही कर्म की दिशा देने वाली युगचेतना की अध्यक्षता के मूर्तिरूप हैं।
श्री लक्ष्मी पारे की तरह चंचला हैं, पारे की तरह चुटकी की पकड़ में नहीं आतीं। उनका वाहन उलूक निशब्द उडऩे वाला गर्दन को चारों ओर घुमाने वाला विवेक व सतर्कता का प्रतीक। श्री लक्ष्मी का कामिनी रूप सभी अमूल्य सुन्दर व उपभोगी वस्तुओं में झलकता है। उनका अष्टलक्ष्मी स्वरूप भी पूजनीय है।
आदि लक्ष्मी : आदि से अन्त तक विश्व का भरण पोषण करने वाली।
धान्य लक्ष्मी : उन सम्पूर्ण वनस्पतियों की रक्षक जो जड़ चेतन जीव के भले के लिए व आयुर्वेदित चिकित्सा सुश्रुसा के लिए उपयुक्त हैं।
धैर्य लक्ष्मी : बुद्धि धन व शक्ति का समुचित उपयोग धैर्य से करने हेतु।
गज लक्ष्मी : साधकों की संवेदनाओं को पूर्ण विकसित कर प्रत्येक काम्यकर्म को निभाने के पुरुषार्थ की क्षमता देना।
सन्तान लक्ष्मी : सुयोग्य व स्वस्थ संतान वर दायिनी।
विजय लक्ष्मी : महान उद्देश्य वाले कार्यों में श्रेष्ठ साधकों को विजय श्री से विभूषित करना।
विद्या लक्ष्मी : ऐश्वर्य व समृद्धि प्राप्ति हेतु वातावरण योग्यता व जानकारी उपलब्ध कराना।
धन लक्ष्मी : सर्वविदित सर्वप्रसिद्ध रूप जो अपने उन सभी आराधकों को जो उनका स्मरण स्तुति व आह्वान करते हैं, उन्हें सब प्रकार की सम्पत्तियों और पूंजियों से परिपूरित करती हैं। उनके अनेक रूपों में कमला रूप जीवन को आनन्दमयी यात्रा बना देता है जिससे रहन-सहन आरामदेय व सौदर्यमय हो और हमारी वैदिय संस्कृति फले-फूले।
उनकी पूजन छवि में उनके दोनों ओर सेवक हाथी सूंडों से जल बरसा रहे हैं। संदेश है कि समयानुसार काले सलेटी बादल वृष्टि करें धन-धान्य का समुचित वितरण हो। श्री लक्ष्मी के कर कमलों से झरते सोने के सिक्के कर्मयोग का फल दर्शाते हैं। एक सत्य कर्मयोगी के कर्म में किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान नहीं बन सकती। यही इस मंत्र का 'कराग्रे वसते लक्ष्मी' का तात्पर्य है अर्थात हाथों के अग्रभाग अंगुलियों के पोरों में ही लक्ष्मी का वास है और इनका प्रभात में दर्शन बताया है। श्री लक्ष्मी के आह्वान का बीज मंत्र है-
'ओ3म हृ श्रीं लक्ष्मीभ्यो नम:'
'श्री' शब्द प्रतीक है तेज, शोभा, ऐश्वर्य, समृद्धि व भव्यता का जो दरिद्रता व कमी आदि पापों का नाशक है। संयमी अहंकार रहित परिश्रमी उदार नम्र पवित्र शुचितापूर्ण साधकों पर श्री लक्ष्मी की विशेष कृपा होती है। जो व्यक्ति धन का गुलाम नहीं उसके साथ आए विकारों से ग्रसित नहीं, वो ही अपने संसार का स्वामित्व पाता है। इस सत्य की पुष्टि बहुत सौन्दर्यमय ढंग से शेषनाग शैय्या पर लेटे श्री विष्णु के पैरों की ओर बैठी लक्ष्मी के रूप में की गई है। प्रकाशोत्सव दीपावली में, विशेष रूप से महालक्ष्मी का आह्वान व पूजा की जाती है। लोग विघ्नहर्ता शुभकर्ता श्री गणेश व सुख सौभाग्य बरसाने वाली श्री लक्ष्मी के स्वागतार्थ अपने घरों की साफ-सफाई व सजावट करते हैं। रीति अनुसार बही खातों व शास्त्रों की पूजा फूल, पान, सुपारी, खीर, बताशों, मेवा व मिष्ठानों से की जाती है। विद्या लक्ष्मी को प्रसन्न करने हेतु दीवार पर टंगे बड़े से कागज या चादर पर घर के प्रत्येक सदस्य द्वारा कुछ न कुछ शुभ प्रतीक चित्रित कर अद्भुत भित्तिचित्र बनाया जाता है।
यह मान्यता है कि जिनको जो भी कलाएं आती हैं, दीपावली की अमावस्या पर कर लेने से वो विधाएं कभी भी उनका साथ नहीं छोड़ती। सदा साधक को याद रहती हैं। वातावरण स्वच्छ बनाना उस महान सत्य के बाहर प्रकाश व स्वच्छता के साथ-साथ आत्मनिरीक्षण कर कर्मों के हिसाब-किताब को लोगों से अपने सम्बन्धों और व्यवहारों को भी उलट-पलट कर देखना है, प्रेमपगी मिठाइयों व भेंटों से कड़वाहट को मधुरता में बदलना है, केवल घरों को ही नहीं हृदयों को भी निर्मल करना है, ताकि श्री लक्ष्मी का स्वागत आंतरिक व बाह्य शुद्धता से परिपूर्ण हो और सम्पूर्ण वातावरण मानवता के लिए प्रकाशमय प्रेममय सुनहरे भविष्य के अवतरण का संयोग बना दे।
सभी को शुभ दीपावली
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Anuj Agrawal, Editor Dialogue India
www.dialogueindia.in
Mob. 9811424443
ओऽम श्री महालक्ष्मीऽच विद्महे विष्णुपत्नैऽच धीमहि तन्नोलक्ष्मी प्रचोदयात्।
ओ श्री महालक्ष्मी, विष्णु पत्नी जिनकी कांति सुवर्ण समान देदीप्यमान व शोभामय है वो देवी लक्ष्मी मुझ पर कृपा करें।
श्री लक्ष्मी श्रीमद्भागवतानुसार समुद्र मंथन से प्राप्त चौदह सम्पदाओं व विभूतियों में से एक हैं। लाल परिधान दिव्य आभूषणों और मणिमुक्ताओं युक्त मुकुट धारण किए प्रसन्न वदन कमल पर खड़ी हुई मुद्रा में प्रकट हुईं। एक हाथ में शंख सत्य के तुमुलनाद का प्रतीक, दूसरे हाथ में शुद्ध विवेक का परिचायक कमल, तीसरे हाथ में बेलफल धरती को परिलक्षित करता हुआ कि सही आर्थिक नीतियों द्वारा समस्त धरा पर समृद्धि व खुशहाली व्याप्त हो। बेलफल शिव जी को अर्पण करते हैं, जो अपूर्णता के संहार के लिए प्रयुक्त मानव ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है और उन प्राकृतिक नियमों का भी द्योतक है कि ऊर्जाओं के नियमन व संतुलन से ही सत्यम् शिवम् सुन्दरम् विश्व निर्मित होता है। चौथे हाथ में अमृत कलश है जो जीवन को पूर्णता व पूर्ण आत्मतुष्टि देने में सक्षम है। दिव्य स्थितियों को आकर्षित करने के स्रोत खोलता है। श्री लक्ष्मी विष्णु सहभागिनी होने के कारण वैष्णवी भी कहाती हैं जो नित्यता व सात्विकता के धर्म का परिचायक है। श्री विष्णु तो पूर्णता निरन्तरता के संरक्षक व प्रश्रयदाता हैं परम कृपालु हैं। मर्यादा गुणवत्ता व पूर्ण धर्मकालानुसार सही समय पर सही कर्म की दिशा देने वाली युगचेतना की अध्यक्षता के मूर्तिरूप हैं।
श्री लक्ष्मी पारे की तरह चंचला हैं, पारे की तरह चुटकी की पकड़ में नहीं आतीं। उनका वाहन उलूक निशब्द उडऩे वाला गर्दन को चारों ओर घुमाने वाला विवेक व सतर्कता का प्रतीक। श्री लक्ष्मी का कामिनी रूप सभी अमूल्य सुन्दर व उपभोगी वस्तुओं में झलकता है। उनका अष्टलक्ष्मी स्वरूप भी पूजनीय है।
आदि लक्ष्मी : आदि से अन्त तक विश्व का भरण पोषण करने वाली।
धान्य लक्ष्मी : उन सम्पूर्ण वनस्पतियों की रक्षक जो जड़ चेतन जीव के भले के लिए व आयुर्वेदित चिकित्सा सुश्रुसा के लिए उपयुक्त हैं।
धैर्य लक्ष्मी : बुद्धि धन व शक्ति का समुचित उपयोग धैर्य से करने हेतु।
गज लक्ष्मी : साधकों की संवेदनाओं को पूर्ण विकसित कर प्रत्येक काम्यकर्म को निभाने के पुरुषार्थ की क्षमता देना।
सन्तान लक्ष्मी : सुयोग्य व स्वस्थ संतान वर दायिनी।
विजय लक्ष्मी : महान उद्देश्य वाले कार्यों में श्रेष्ठ साधकों को विजय श्री से विभूषित करना।
विद्या लक्ष्मी : ऐश्वर्य व समृद्धि प्राप्ति हेतु वातावरण योग्यता व जानकारी उपलब्ध कराना।
धन लक्ष्मी : सर्वविदित सर्वप्रसिद्ध रूप जो अपने उन सभी आराधकों को जो उनका स्मरण स्तुति व आह्वान करते हैं, उन्हें सब प्रकार की सम्पत्तियों और पूंजियों से परिपूरित करती हैं। उनके अनेक रूपों में कमला रूप जीवन को आनन्दमयी यात्रा बना देता है जिससे रहन-सहन आरामदेय व सौदर्यमय हो और हमारी वैदिय संस्कृति फले-फूले।
उनकी पूजन छवि में उनके दोनों ओर सेवक हाथी सूंडों से जल बरसा रहे हैं। संदेश है कि समयानुसार काले सलेटी बादल वृष्टि करें धन-धान्य का समुचित वितरण हो। श्री लक्ष्मी के कर कमलों से झरते सोने के सिक्के कर्मयोग का फल दर्शाते हैं। एक सत्य कर्मयोगी के कर्म में किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान नहीं बन सकती। यही इस मंत्र का 'कराग्रे वसते लक्ष्मी' का तात्पर्य है अर्थात हाथों के अग्रभाग अंगुलियों के पोरों में ही लक्ष्मी का वास है और इनका प्रभात में दर्शन बताया है। श्री लक्ष्मी के आह्वान का बीज मंत्र है-
'ओ3म हृ श्रीं लक्ष्मीभ्यो नम:'
'श्री' शब्द प्रतीक है तेज, शोभा, ऐश्वर्य, समृद्धि व भव्यता का जो दरिद्रता व कमी आदि पापों का नाशक है। संयमी अहंकार रहित परिश्रमी उदार नम्र पवित्र शुचितापूर्ण साधकों पर श्री लक्ष्मी की विशेष कृपा होती है। जो व्यक्ति धन का गुलाम नहीं उसके साथ आए विकारों से ग्रसित नहीं, वो ही अपने संसार का स्वामित्व पाता है। इस सत्य की पुष्टि बहुत सौन्दर्यमय ढंग से शेषनाग शैय्या पर लेटे श्री विष्णु के पैरों की ओर बैठी लक्ष्मी के रूप में की गई है। प्रकाशोत्सव दीपावली में, विशेष रूप से महालक्ष्मी का आह्वान व पूजा की जाती है। लोग विघ्नहर्ता शुभकर्ता श्री गणेश व सुख सौभाग्य बरसाने वाली श्री लक्ष्मी के स्वागतार्थ अपने घरों की साफ-सफाई व सजावट करते हैं। रीति अनुसार बही खातों व शास्त्रों की पूजा फूल, पान, सुपारी, खीर, बताशों, मेवा व मिष्ठानों से की जाती है। विद्या लक्ष्मी को प्रसन्न करने हेतु दीवार पर टंगे बड़े से कागज या चादर पर घर के प्रत्येक सदस्य द्वारा कुछ न कुछ शुभ प्रतीक चित्रित कर अद्भुत भित्तिचित्र बनाया जाता है।
यह मान्यता है कि जिनको जो भी कलाएं आती हैं, दीपावली की अमावस्या पर कर लेने से वो विधाएं कभी भी उनका साथ नहीं छोड़ती। सदा साधक को याद रहती हैं। वातावरण स्वच्छ बनाना उस महान सत्य के बाहर प्रकाश व स्वच्छता के साथ-साथ आत्मनिरीक्षण कर कर्मों के हिसाब-किताब को लोगों से अपने सम्बन्धों और व्यवहारों को भी उलट-पलट कर देखना है, प्रेमपगी मिठाइयों व भेंटों से कड़वाहट को मधुरता में बदलना है, केवल घरों को ही नहीं हृदयों को भी निर्मल करना है, ताकि श्री लक्ष्मी का स्वागत आंतरिक व बाह्य शुद्धता से परिपूर्ण हो और सम्पूर्ण वातावरण मानवता के लिए प्रकाशमय प्रेममय सुनहरे भविष्य के अवतरण का संयोग बना दे।
सभी को शुभ दीपावली
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