Thursday, March 27, 2014

[IAC#RG] मौलिक भारत के प्रयासों को मिली सफलता

मौलिक भारत के प्रयासों को मिली सफलता

चुनाव आयोग की विज्ञान  भवन में आयोजित चुनावों की घोषणा से संबंधित पे्रस कांफ्रेंस में डायलॉग इंडिया के सक्वपादक एवं मौलिक भारत के राष्ट्रीय महासचिव अनुज अग्रवाल द्वारा मुख्य चुनाव आयुक्त बी.एस. सम्पत से पूछा गया प्रश्न कि बिना शपथ पत्रों की जाँच की स्थायी व्यवस्था के आप कैसे स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनावों का दावा कर सकते हैं के बाद लगता है चुनाव आयेाग कुछ हरकत में आया है और उसने जहाँ ई-फाइलिंग पर जोर देना शुरू किया है (यद्यपि इसे अनिवार्य नहीं बनाया है) वहीं यह भी घोषित किया है कि चुनावों के बाद उम्मीदवारों के शपथ पत्र आयकर विभाग को दिये जायेंगे जिससे वह उम्मीदवारों के आय व सम्पत्ति के दावों की वास्तविकता को परख सकें।
    इस पे्रस वार्ता को देश-विदेश के 300 से अधिक चैनल लाईव दिखा रहे थे और करोड़ों लोग सुन रहे थे जिस कारण पूरे देश को पता चल गया कि अरविन्द केजरीवाल ने झूठा शपथपत्र भरा था व शपथ पत्र महत्वपूर्ण कानूनी दस्तावेज होता है और इसका मुख्य प्रायोजन आम मतदाता तक चुनाव लडऩे वाले प्रत्याशी का bio - data ,अपराध आय व सम्पत्ति के लेखा-जोखा पहुँचाना है। जिससे मतदाता के मतदान करने से पूर्व प्रत्याशी के बारे में अपना मत/विचार बना सके और इसमें गलत जानकारी देने पर निर्वाचन रद्ध हो सकता है व जेल भी हो सकती है। इसके बाद देशके विभिन्न भागों मे ंलोगों ने अनेकों प्रत्याशियों के शपथ पत्र चुनौती देने शुरू कर दिये हैं और किरण खेर, नवीन पटनायक, राव वीरेन्द्र सिंह, शाजिया इल्मी आदि के शपथ पत्र गलत सूचना देने के कारण जाँच के दायरे में आ गये हैं। मौलिक भारत ने चुनाव आयोग से कुछ महत्वपूर्ण सवाल भी पूछे हैं-

    -- द्जिलों में उम्मीदवारों के नामंकन स्वीकार करने वाले निर्वाचन अधिकारी अगर गलत नामांकन भी सही बता कर स्वीकार कर लेते हैं तो उनकी क्या जवाबदेही होती है और उन्हे ंक्या सजा दी जाती है                क्योंकि उनकी गैर जिम्मेदारी से लोकतंत्र की जड़ें कमजोर होती हैं।
 --   नामांकन व शपथपत्र में मतदाता बनने के बाद से नामांकन भरने के बीच के वर्षों में उम्मीदवार के पद, व्यापार, जीवनवृत्त आदि की जानकारी क्यों नहीं ली जाती है? जबकि सभी सरकारी पदों के लिए यह            जरूरी होता है।
--     अगर उम्मीदवार पहले भीचुनाव लड़ चुका है तो उसके पिछले शपथ पत्रों का नये शपथ पत्रों से मिलान क्यों नहीं किया जाता?
--     चुनाव आयोग सभी शपथ पत्रों की समयबद्ध जाँच की व्यवस्था करने के निर्देश क्यों नहीं दे रहा?
       मौलिक भारत का आरोप है कि कहीं न कहीं सरकार व चुनाव आयोग आपसी मिली-भगत से ही देश में लोकतंत्र के वास्तविक क्रियान्वयन की राह में रोड़ा है। किन्तु इतना स्पष्ट है कि राजनीति को धनतंत्र          व बाहुतंत्र से मुक्त करने की लड़ाई अब निर्णायक दौर में पहुँच चुकी है।


मौलिक भारत के अनुत्तरित प्रश्न 
न्यायालय और चुनाव आयोग
3 मार्च 2014 को दिल्ली के कांस्टिट्यूशन क्लब में 'मौलिक भारत के द्वारा जब 'लोकतंत्र को धोखतंत्र में बदलता चुनाव आयोग विषय पर अपना प्रस्तुतीकरण देश, जनता, पत्रकारों व बृद्धिजीवियों के सामने तो रखा गया तो दर्शक स्तब्ध रह गये। सिलसिलेवार परत दर परत जब संजीव गुप्ता एवं नीरज सक्सेना ने दस्तावेजों के साथ चुनाव आयोग के कार्यप्रणाली पर गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़े किये तो यकायक ही देश में लोकतंत्र की उपस्थिति पर से ही विश्वास सा ही उठ गया। दो घंटे की प्रस्तुतीकरण से जिसका विवरण आगे दिया गया है, स्पष्ट होता गया कि देश में चुनाव सुधारों की आवाज उठाने से पहले चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली में व्यापक सुधारों की आवश्यकता है। इसे अधिक जवाबदेह, पारदर्शी और अधिकारयुक्त बनाना समय की माँग है। सच्चाई यह है कि यह संवैधानिक संस्था अपनी साख खो चुकने के कगार पर है और इसके ढ़ांचे व कार्यपद्धति में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है। बकौल मौलिक भारत के महासचिव अनुज अग्रवाल ''चुनाव आयोग सीबीआई की तरह से ही पिंजरे में बंद तोता है जिसका इस्तेमाल सत्तारूढ़ सरकारे अपने हितों के अनुरूप कर रही है।
    चुनाव आयोग की अक्षमता और गैर जवाबदेही उस दिन भी स्पष्ट हुई जब विज्ञान भवन में दिनांक 7 मार्च 2014 को चुनाव आयुक्तों ने लोकसभा चुनावों की घोषणा के समय मीडिया से बातचीत की थी और डायलॉग इंडिया के संपादक अनुज अग्रवाल ने तीन बार यह प्रश्न मुख्य चुनाव आयुक्त बी.एस.सम्पत से पूछा कि 'दिल्ली विधानसभा के चुनावों के समय प्रत्याशी के रूप में आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल ने जो अपना शपथ पत्र दाखिल किया था एवं जिसकी प्रति मैं आपको दिखा रहा हूँ वह पूर्णत: गलत/फर्जी है और उसमें बहुत सारी जानकारियां गलत है। इसको लेकर जब मौलिक भारत ट्रस्ट दिल्ली उच्च न्यायालय में गया तब चुनाव आयोग के वकील ने न्यायालय से कहा कि हमारे पास शपथ पत्रों की जाँच की कोई व्यवस्था ही नहीं है ऐसे में कृप्या स्पष्ट करें-
(अ) अरविंद केजरीवाल के फर्जी शपथपत्र के विरुद्ध आपने अभी तक क्या कार्यवाही की है?
(ब) क्या आयोग ने उम्मीदवारों के शपथपत्रों की जांच के लिए कोई स्थायी व्यवस्था शुरू की है?
(स)    यदि नहीं तो बिना उपयुक्त व्यवस्था के लोकसभा चुनावों, जिनकी अपने अभी घोषणा की है किस प्रकार स्वतंत्र एवं निष्पक्ष कराये जा सकते हैं?
    दु:खद यह रहा कि संपत्त साहब के पास कोई स्पष्ट व संतुष्ट करने वाला जवाब नहीं था और वे इधर-उधर जबाव देकर प्रश्न को टाल गये। ऐसे गैर जवाबदेह चुनाव आयोग के रहते देश में लोकतंत्र की कल्पना व्यर्थ है।
    अरविंद केजरीवाल के फर्जी शपथपत्र के संबंध में दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुरूप पटियाला हाउस, दिल्ली में मौलिक भारत के पदाधिकारियों नीरज सक्सेना एवं अनुज अग्रवाल की 'आपराधिक शिकायत पर 10 मार्च 2014 को सुनवाई के दौरान न्यायालय ने नीरज सक्सेना के बयान दर्ज किये एवं अन्य गवाहों को नोटिस जारी कर 7 मई 2014 को उपस्थित होने के आदेश दिये। इतने महत्वपूर्ण मामले पर इतना समय लगना खासा बेचैन कर देता है।
    10 मार्च को ही उच्चतम न्यायालय ने एक ऐतिहासिक निर्णय दिया कि जिस भी विधायक या सांसद पर अपराधिक मामले चल रहे है, उन पर आरोप पत्र दािखल होने के एक वर्ष के अंदर प्रतिदिन के आधार पर सुनवाई कर अदालती प्रक्रिया पूरी की जाये और इसमें किसी भी देरी के लिए निचली अदालतें जवाबदेह होंगी। राजनीति के बढ़ते अपराधिकरण को रोकने की दिशा में यह आदेश महत्वपूर्ण सिद्ध होगा। इसी केस की सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग की सहमति से विधि आयोग ने 'गलत शपथ पत्र भरने को भ्रष्टाचार को श्रेणी में रखने एवं इस मामले में आरेाप सिद्ध हो जाने पर सजा छह माह एवं जुर्माने से बढ़ाकर दो वर्ष का गंभीर अपराध की श्रेणी में रखने की सिफारिश की जो 'मौलिक भारत ट्रस्ट द्वारा किये जा रहे प्रयासों के कारण संभव हो सका है।
    झूठे शपथ पत्रों के भरने के संबंध में भारतीय मीडिया द्वारा अधिक महत्व न दिये जाने व उदासीन रहने से उनका खोखलापन ही अधिक नजर आया और वे कारपोरेट समूहों व सत्तारूढ़ दलों के प्रभाव में किस प्रकार महत्वपूर्ण मुद्दों को दरकिनार करते हैं, यह भी स्पष्ट हुआ। किंतु मौलिक भारत ट्रस्ट अपने प्रयासों में लगा हुआ है और अब वह केजरीवाल के झूठे शपथ पत्र संबंधित शिकायत को तीव्र सुनवाई के लिए उच्च न्यायालय से अनुरोध करने जा रहा है वहीं शपथ पत्रों की जाँच के लिए स्थायी प्रक्रिया के निर्माण संबंधी आदेश के लिए उच्चतम न्यायालय में याचिका डालने पर विचार कर रहा है। दुखद है कि मौलिक भारत द्वारा किये गये प्रयासों को मीडिया सही प्रकार से जनता तक नहीं पहुँचा रहा है। मौलिक भारत के प्रयासों का ही नतीजा भी उम्मीदवार के शपथ पत्र को चुनौती देने की शक्ति दे दी हैं किंतु प्रसार के अभाव में देश का मतदाता अपनी इस शक्ति से परिचित ही नहीं हैं।

 धन्यवाद।
                                                                                                                                                                                                                                   दिनांक: 27.03.2014

               भवदीय

          
राष्ट्रीय संरक्षकः   पवन सिन्हा  ,राष्ट्रीय अध्यक्ष -  गजेन्द्र सोलंकी , राष्ट्रीय महासचिव-  अनुज अग्रवाल, मार्गदर्शक चुनाव सुधार - नीरज सक्सेना, संजीव गुप्ता, 

मौलिक भारत आंदोलन

       बेवसाईट: www.maulikbharat.org

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