Monday, April 1, 2013

[IAC#RG] पारदर्शी एवं स्वच्छ शासन – सूचना का अधिकार- अधिकारियों की शक्तियों का प्रकाशन

Dear Mani Ram Ji,

We Salute your Efforts to Making Indian democracy Transparent .

let us Hope President of rajaya Sabha Consider Your As well as Our Prayer.  

2013/3/31 Mani Ram Sharma <maniramsharma@gmail.com>

माननीय अध्यक्ष,  

राज्य  सभा,

नई दिल्ली -110 001

 

मान्यवर,

पारदर्शी एवं स्वच्छ शासन सूचना का अधिकार- अधिकारियों की शक्तियों का प्रकाशन

 

कृपया उक्त प्रसंग में मेरे पूर्व निवेदन दिनांक 17.03.2013 का सन्दर्भ लें जिसके माध्यम आपसे निवेदन किया गया था कि  पारदर्शी एवम भ्रष्टाचारमुक्त शासन के लिए शक्तियों के  प्रयोग करने में पारदर्शिता और समय मानक निर्धारित होना आवश्यक है क्योंकि विलम्ब भ्रष्टाचार की जननी है| इस दिशा में सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 4 (1) (b) (ii) में  सभी स्तर के अधिकारियों की शक्तियां स्वप्रेरणा से प्रकाशित करना बाध्यता है किन्तु सदन सचिवालय ने इसकी अभी तक अनुपालना नहीं की है और सचिवगण अपनी शक्तियों के अतिक्रमण में निर्णय ले रहे हैं व नीतिगत मामलों में जन परिवेदनाओं को, बिना किसी सक्षम जनप्रतिनिधि/प्रभारी की अनुमति के, सचिव स्तर पर ही निस्संकोच निरस्त कर  दिया जाता है|

  1. माननीय सदन ने जो भी आंशिक सूचना अधिनियम की धारा 4 के अनुसरण में प्रकाशित कर रखी है वह बिखरी हुई है व एक स्थान  पर उपलब्ध नहीं होने से नागरिकों के लिए दुविधाजनक है| माननीय सदन ने धारा 4(1)(b)(i) से  लेकर 4(1)(b)(xvii) तक की भावनात्मक अनुपालना नहीं की है और धारा 4 (1) (b) (ii)  की तो बिलकुल भी अनुपालना नहीं की है| अत: अब धारा 4 (1) (b) (ii) की अनुपालना की जाये और धारा 4 से सम्बंधित समस्त सूचना एक ही स्थान पर समेकित कर बिन्दुवार/धारा उपधारावार  सहज दृश्य रूप में प्रदर्शित करने की व्यवस्था की जाये ताकि सुनिश्चित हो सके कि सभी प्रावधानों की अनुपालना कर दी गयी है व कोई प्रावधान अनुपालना से छूटा नहीं है|
  2. आप सदन के मुखिया हैं और सदन की समस्त निर्णायक शक्तियां आप में ही निहित हैं| आपको परामर्श देने और निर्णय में सहायता देने के लिए विभिन्न स्तर के सचिव  और सदन की कमेटियां हैं किन्तु उन्हें किसी भी नियम, नीति सम्बद्ध विषय या नागरिकों के प्रतिवेदन/याचिका  को स्वीकार करने का अधिकार नहीं है| स्वीकृति के साथ ही अस्वीकृति का अधिकार सम्मिलित है| अत: स्वस्प्ष्ट है कि किसी भी स्तर के सचिव को किसी जन प्रतिवेदन/याचिका को अन्तिमत: अस्वीकार करने का कोई अधिकार सदन के किसी कानून, नियम, अधिसूचना, आदेश आदि में नहीं दिया गया है और न ही लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में ऐसा कोई अधिकार किसी सचिव को दिया जा सकता है|
  3. सरकार को निर्देश देने की शक्तियाँ भी आसन में ही समाहित हैं अत: ऐसे किसी निवेदन को सचिव स्तर पर नकारने का भी स्वाभाविक रूप से कोई अधिकार नहीं है| चूँकि प्रतिवेदन प्रस्तुत करने का यह अधिकार जनता को संविधान के अनुच्छेद 350 से प्राप्त है अत: इस मार्ग में बाधा उत्पन्न करने के लिए किसी भी आधार पर कोई भी सचिव प्राधिकृत नहीं है| यदि कोई प्रकरण वास्तव में स्वीकृति योग्य नहीं पाया जाए तो उसका अंतिम निर्णय भी सक्षम समिति या आसन ही कर सकता है|   

अत: आपसे करबद्ध निवेदन है कि सदन की कार्यवाहियों की पवित्रता और श्रेष्ठता की सुरक्षा के लिए समस्त अधिकारियों को तदनुसार निर्दिष्ट किया जाए और उनकी प्रशासनिक/निर्णायक शक्तियों/क्षेत्राधिकार को माननीय सदन की वेबसाइट पर सहज दृश्य रूप में प्रदर्शित किया जाए| अति कृपा होगी| 

 

सादर,

 

 भवनिष्ठ

 

मनीराम शर्मा                                       दिनांक: 31.03.2013

एडवोकेट

नकुल निवास, रोडवेज डिपो के पीछे

सरदारशहर-331403

जिला-चुरू(राज)

 

 

 

 


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