i Wish all
a
Very colorful & Prosperous
New Year 2014
MAY THE COMING YEAR BRING YOU
GOOD HEALTH, JOY, PEACE & PROSPERITY
With best regards,
PROF. C. UPENDER RAO,
JNU, NEW DELHI
2013/12/31 Dr. NC Jain <j_nc2000@yahoo.com>
Dear sirI donot agree with you. Future will tell the truth. You may be aware that Indira Gandhi created Bhinderwala and the same was responsible for blue star operation. In view of this, it better to wait & watch. In politics, everything is possible. Friends become enemy & vice versa.Dr N C Jain30-12-13
On Tuesday, December 31, 2013 4:15 AM, Anuj Agrawal <dialogueindia.in@gmail.com> wrote:
Respected Friends
NUTAN VARSH ABHINANDAN.
An analysis on AAP.
If you find justified. please read, react and disseminate.
दो सभ्यताओं का संघर्ष
च विधानसभा चुनावों में नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में भाजपा की जीत
गहरे मायने रखती है। यह देश में राष्ट्रवाद के बढ़ते उफान का संकेत है।
जाति, धर्म, क्षेत्र और भाषा की राजनीति का अगला क्रम राष्ट्रवाद ही होता
है और अब इन मुद्दों के सहारे राजनीति के धंधेबाजों की दुकानें सिमटने का
समय आता जा रहा है। निश्चय ही अभी इसमें कुछ और वर्ष लगेंगे। कांग्रेस
पार्टी द्वारा मानवतावाद और अंतर्राष्ट्रीयवाद के नाम पर संकीर्ण सोच के
दायरे में जीने पर मजबूर किये जा रहे भारतीयों में इन मुद्दों का खोखलापन
समझ में आता जा रहा है। विकसित देशों द्वारा अपने हितों व अपने बाजार को
भारत में बनाये रखने के लिए नित नयी-नयी साजिशें रची जाती हैं। कांग्रेस
पार्टी एवं कई क्षेत्रीय दलों से इनकी खासी गलबहियां हैं। पिछले दस
वर्षों की अनवरत लूट व भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए इन्हीं शक्तियों ने
'जनलोकपाल, 'आम आदमी पार्टी एवं नारी उत्पीडऩ जैसे आंदोलनों, दल व
मुद्दों को भड़काया एवं जनता को भ्रमित करने की कोशिश की है। वस्तुत: यह
दो सभ्यताओं का संघर्ष है जिसमें एक ओर भाजपा एवं संघ परिवार है तो दूसरी
ओर कांग्रेस पार्टी, वामपंथ एवं पश्चिमी बाजारू ताकतें हैं। अब यह विभाजन
स्पष्ट हो चुका है।
पिछले दस वर्षों में कांग्रेस पार्टी ने बड़ी कुटिलता से संघ परिवार
को अपने फंदे में जकड़कर इनके आंदोलन को बिखेरने की कोशिश की है। अनेक
संघ के नेताओं को हिन्दू सांप्रदायिकता भड़काने के नाम पर घेरे में लिया
तो अनेक भाजपा नेताओं को घोटालों व भ्रष्टाचार के मुद्दों पर घेरकर
निस्तेज करने की साजिश की। भाजपा के अनेक असंतुष्ट मुद्दों को भड़काकर
पार्टी में विद्रोह की अनेक कोशिशों को अंजाम दिया गया और अनेक जगह भाजपा
की सरकारों को गिराने व हराने के षड्यंत्र रचे गये। कहीं न कहीं कांग्रेस
पार्टी लालकृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज एवं अरुण जेटली जैसे भाजपा के
शीर्ष नेतृत्प को घेरकर रोके रखने में सफल हुई और इसी कारण पिछले दस
वर्षों में भाजपा अपने विस्तार व प्रभाव के साथ-साथ मुद्दों से भटकती नजर
आई और संघ परिवार भी अपनी कमजोरियों का शिकार होकर बिखराव का शिकार होता
गया।
कांग्रेस पार्टी की नजर भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों पर थी
और इस क्रम में वह कर्नाटक, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश व झारखंड में
भाजपा की कमजोरियों को भुनाकर सरकार बनाने में सफल रही। बिखरते टूटते
भाजपा व संघ परिवार के लिए नरेंद्र मोदी का प्रभावी व्यक्तित्व एवं उनकी
प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के लिए दावेदारी की स्वीकृति अमृत के समान
सिद्ध हो गयी। मोदी के बढ़ते कद, जन स्वीकार्यता एवं प्रभाव ने यकायक कुछ
ही महीनों में भाजपा को पुन: दौड़ में खड़ा कर दिया और गुजरात,
मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के भाजपा मुख्यमंत्रियों के शानदार शासन में
तीसरी बार जनता के विश्वास व्यक्त करने के कारण कांग्रेस पार्टी बिखराव
के दौर में आकर अब तक के सबसे खराब प्रदर्शन के निकट खड़ी है। चिंता
कांग्रेस पार्टी से जुड़े धनपतियों, बुद्धिजीवी वर्ग, लेखकों, कलाकारों,
पत्रकारों, एक्टिविस्ट लोगों व एनजीओं गैंग को है। चूंकि उनकी दुकानें
बंद होने वाली है। ऐसे में इस वर्ग के लोगों द्वारा सोनिया-मनमोहन के
सत्ता संघर्ष व घोटालों के 'सेफ्टीवाल्व अन्ना हजारे व अरविंद केजरीवाल,
जिनका प्रयोग भ्रम की राजनीति के तहत 'जनलोकपाल आंदोलन के लिए किया गया
था, की विश्वसनीयता का पुन: प्रयोग किया जा रहा है। दिल्ली में अपनी हार
निश्चित जानकर अनेक कांग्रेसी नेताओं ने अपने समर्थकों से आआपा को वोट
दिलाया। मीडिया का भरपूर इस्तेमाल कर आआपा के पक्ष में हवा बनाना एवं
आआपा की उपलब्ध्यिों को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाना तथा अन्ना का इस्तेमाल कर
'लोकपाल विधेयक को पुन: चर्चा में लाकर भाजपा की जीत, तेलगांना, पार्टी
की हार एवं छूटते सहयोगियों के मुद्दे से ध्यान हटाने की हर संभव कोशिश
करना रणनीति के तहत है।
कांग्रेस पार्टी एवं उसके समर्थक 'मीडिया एवं एनजीओ की कोशिश है कि
'केजरीवालको सुशासन, पारदर्शिता, भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्षशील नायक
आदि के रूप में मोदी के समानान्तर पेश किया जाये और किसी हद तक मोदी के
पक्ष में बहती हवा को मंद किया जाये। किंतु देश 'दिल्ली नहीं है। भाजपा
की लगातार बढ़त व लोकप्रियता, उसके मुख्यमंत्रियों का तीसरी बार चुना
जाना कहीं न कहीं उनके उसी 'सुशासन पर जनता की मुहर है जिसका दावा
केजरीवाल कर रहे हैं, किंतु प्रयोग में अभी तक कुछ भी करके नहीं दिखा
पाये हैं।
मुख्य मुद्दे भारतीयता, स्वसंस्कृति, स्वदेशी एवं रोजगार और
भारतीयोंं के आत्मगौरव व स्वाभिमान के हैं जो भारतीय जनता पार्टी की
विचारधारा के मूल तत्व है। इन मुद्दों पर केजरीवाल कहीं न कहीं कांग्रेसी
विचारधारा की गोदी में बैठे दिखते हैं। निश्चित रूप से 'भारत तत्व की खोज
भाजपा व संघ परिवार के दर्शन में तो खोजी जा सकती है, बाकी दलों में इसका
मिलना मुश्किल होता जा रहा है। परिवर्तन लोकतंत्र या आवश्यकता है तो आने
वाले लोकसभा चुनाव में जनता क्यों न संघ परिवार पर दांव लगाये?
आप की नैया - कांग्रेस खिवैया
लोकसभा चुनावों में अपनी हार, बिखराव व टूट से पहले कांग्रेस पार्टी अपने
संभावित विकल्प एनडीए की राह में अधिकतम रोड़े बिखेरने पर आमादा है। आआपा
पार्टी की दिल्ली में सरकार, फर्जी लोकपाल कानून और भारतीय राजनयिक
देवयानी के प्रकरण में अमेरिका से तकरार अकस्मात नहीं है। कांग्रेस के
डूबते जहाज पर सवार 'तोडफ़ोड़ व प्रपंच की राजनीति के रणनीतिकार चार
राज्यों में अपनी हार सुनिश्चित जानकर विधनसभा चुनावों के बाद के
नकारात्मक परिदृश्य को भ्रम व भटकाव की राजनीति में बदलने की योजना पहले
ही गढ़ चुके थे। दिल्ली चुनावों में अंतिम समय में कांग्रेसी नेताओं
द्वारा गुपचुप तरीके से आआपा को समर्थन, अन्ना के अनशन का 'फिक्स गेम व
लोकपाल बिल और देवयानी का मसला सब पहले से निर्धरित खेल थे जिससे भाजपा व
मोदी की जीत एवं कांग्रेस व राहुल की शर्मनाक हार चर्चा में न आ सके।
अपने अति उत्साही व जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वासी कांग्रेसी रणनीतिकारों
ने दिल्ली में कांग्रेस पार्टी की लुटिया डूबा दी और उखड़े खूंटो को
संभालती, खीजती-खिसियाती कांग्रेस, जहाँ 'आम आदमी पार्टी को अपनी 'बी टीम
बनाकर अपनी सरकार दोबारा बनाने पर आमादा थी, वहीं वह अब उल्टे 'आम आदमी
पार्टी की 'बी टीम बन बैठी है। प्रेस मीडिया, कारपोरेट घरानों, अमेरिकी
थिंक टैंक (फोर्ड फाउंडेशन व सीआईए) और मनमोहन सिंह के 'चंडीगढ़ क्लब की
बदौलत 'सेफ्टी वाल्व थ्योरी के तहत घोटालों से जनता का ध्यान हटाने व
उलझाने का ठेका उठाकर केजरीवाल टीम ने दिल्ली में सरकार बनाने में सफलता
तो पा ली है किन्तु इससे देश में व्यवस्था परिवर्तन के बड़े आंदोलनों को
बिखेरने के षड्यंत्र करने के जुर्म से उन्हें मुक्ति नहीं मिल सकती।
देर-सबेर देश की जनता उनसे हिसाब मांगेगी। 'क्रोनी कैपिटलिज्म एवं
'कारपोरेट अराजकता के मेल से निकली उनकी 'आम आदमी पार्टी व उसकी सरकार एक
भ्रम और धोखा ही साबित होनी है और 2014 इसका गवाह बनेगा।
केजरीवाल को मोदी के समक्ष प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में खड़े
करने की अमेरिकी साजिश को समझना बहुत जरूरी है क्योंकि उनकी लोकसभा
चुनावों में दावेदारी पुन: एनडीए के वोट काटने का षड्यंत्र ही है, जिसके
परिणाम त्रिशंकू लोकसभा के रूप में सामने आयेंगे और इस खेल के सफल होने
पर सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस पार्टी व अमेरिका ही मुस्करा रहे होंगे।
ईश्वर देश की जनता को धोखा देने की कोशिश करने वालों को सद्बुद्धि दे।
हाँ जनकेन्द्रित शासन की कमियाँ व भ्रष्टाचार के प्रति उदासीन रवैया,
भाजपा को भी छोडऩा होगा, तभी वह लोकसभा चुनावों में सरकार बनाने की सच्ची
दावेदार बन सकती है, नहीं तो तीसरे मोर्चे की सहायता से सत्ता में आने से
कांग्रेस पार्टी को कोई रोक नहीं सकता।
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Anuj Agarwal
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PROF. C. UPENDER RAO,
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