Sunday, October 22, 2017

Re: [IAC#RG] ...एक मुठ्ठी भात ...

Bahut khoob, Gulam ji

2017-10-20 11:04 GMT+05:30 Ghulam kundanam <ghulam.kundanam@gmail.com>:
  एक मुठ्ठी भात
……...…………

कइसे हम बिटिया के बचायीं,
कइसे हम बिटिया के पढायीं,
हमरा तनिको बुझात नइखे;
गरीब लाचार बानी ये 'सरकार'
घरवा में एक मुठ्ठी भात नइखे। गरीब …

काम के भी भइले अकाल,
बिमारी से हमरो सवांग  बेहाल,
गरीबी में कोई हित - नात नईखे;
चूल्हा-बर्तन भी कर के कमइतीं
हमार अइसन पर जात नईखे। गरीब …

कई - कई दिन रहल भूखे परिवार,
राशन ना मिलल  बिना 'आधार'
'मनवां के बात' सुहात नइखे;
दिन त कसहुं कट जाता हमार
भूखे पेट कटत रात नइखे। गरीब …

'आधार' के बिना निराधार बानी हम,
हमार बिटिया के ले लेलस दम,
भुखे पेट उठत 'लात' नइखे;
साहेब के जाँच रिपोट आ गइल,
'भूख से मौत' के बात नइखे। गरीब …

मांटी के चुल्हा भी बाड़े उपास,
जंगल के लकड़ी भी भइले उदास,
हांडी में माड़ पसात  नइखे;
'कोइली' बहिनिंया के गोदिया में मरल
'संतोषी' के तनवा थरथरात नइखे। गरीब …

झारखंड में माँ कोइली की गोद में भात - भात पुकारते हुए 11 वर्षीया बेटी
संतोषी की भूख से हुई मौत की खबर से द्रवित भोजपुरी रचना। ईश्वर संतोषी
की आत्मा की क्षुधा तृप्त कर शांति प्रदान करें ……  देश की व्यवस्था धन
कुबेरों को तृप्त करने में लगी है।

Õm - Õnkār - Allāh .God…..
ॐ.ੴ.الله .† …….
Jai Hind! Jai Jagat (Universe)!
- ग़ुलाम कुन्दनम्   (Ghulam Kundanam).
20/10/2017.

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