पापा ! आप बहुत याद आते हैं
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सीमा पर बने रक्षक परकोटो में,
जंग में लगते गहरे चोटो में,
सैनिक की वर्दी के फोटो में,
हर वक्त आप मुस्काते हैं।
पापा !
आप बहुत याद आते हैं। 2 ।
देश की सीमा पर रहे डटे,
गोली लगी या शर कटे,
मरते दम तक नहीं हटे,
मर कर भी जीत दिलाते हैं।
पापा !
आप बहुत याद आते हैं। 2 ।
पर देश की छाती पर बैठे,
नेता और नौकरशाह ऐठे,
देश को लूट रहे इक्कठे,
व्यर्थ में गाल बजाते हैं।
पापा !
आप बहुत याद आते हैं। 2 ।
मम्मी की आँखों में नमी,
दादा की आँखें देख सूनी,
पूरे परिवार में छाई गमी,
फिर भी आप नहीं आते हैं।
पापा !
आप बहुत याद आते हैं। 2 ।
नन्हीं हाथों से दी अग्नि,
अब तो यादें ही संगनी,
दीदी की होने वाली मंगनी,
सपनों में सपने सजाते हैं।
पापा !
आप बहुत याद आते हैं। 2 ।
(इस कविता को लिखते वक्त मेरी खुद की आँखें भर आई … शहीदों को एक बार फिर
से नमन … उनके परिवारों के प्रति पुन: गहरी संवेदना…)
जय हिन्द !
- ग़ुलाम कुन्दनम्
23/09/2016
(चित्र इंटरनेट से साभार )
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Friday, September 23, 2016
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